Saturday, 28 December 2019

आपकी हथेली में त्रिकोण आपको यश और धन दिलाएगा l


आपकी हथेली की सार्थकता

 यूं तो भविष्य जानने के बहुत सारे तरीके हैं जैसे जन्मकुंडली, हस्तरेखा, टैरो कार्ड रीडिंग, और फेस रीडिंग आधी आधी परंतु फिर भी उसमें हस्तरेखा सबसे प्रामाणिक और सार्थक तरीका है क्योंकि इसमें आपकी हथेली अपने आप में एक स्वयं सिद्ध प्रमाण है, जिसे की सिद्ध करने की आवश्यकता नहीं होती है। किसी सबूत की आवश्यकता नहीं होती है। हमारे भारतीय मनीषियों ने हाथ की रेखाओं को का गहन अध्ययन करके और अपनी कठिन साधना के बल पर हमें इन रेखाओं का ज्ञान दिया। उन्होंने हमें इन रेखाओं को पढ़ने और समझने की एक अनुपम विधि दी, जिसके द्वारा हम भविष्य कथन बड़ी आसानी से कर सकते हैं।

जानिए आपकी हथेली का त्रिकोण कहां बनता है

आपकी हथेली के बिल्कुल मध्य में जो स्थान होता है, वहां पर या तो एक बड़ा त्रिकोण बनता है या फिर एक बड़ा चतुष्कोण बनता है इसे त्रिकोण कहते हैं। यह जीवन रेखा शीर्ष रेखा और स्वास्थ्य रेखा के मिलने से बनता है। यदि स्वास्थ्य रेखा ना भी हो तो भी उसकी कल्पित सीमा माननी पड़ती है तब यह त्रिकोण  बनता है। इसकी तीनो रेखाएं अच्छी हो तो जातक स्थिर मन वाला, दयालु,बुद्धिमान,दीर्घायु, विद्वान, भाग्यवान ,सच्चरित्र, क्रियाशील, उत्साहित, दानी, न्यायी उदार धार्मिक उपकारी और आत्म विश्वासी होता है। साथ ही उसके जीवन में धन संचय अधिक होता है जिससे वह धन वालों की श्रेणी में आता है।

त्रिकोण को कैसे प्रबल बनाएं

हथेली के मध्य जब बड़ा और मजबूत त्रिकोण बनता है तब वह व्यक्ति को धन और यश दिलाता है। धन और यश एक दूसरे के पर्यायवाची होते हैं, यदि धन आता है तो यह अपने साथ यश लाता है और जब यश आता है तब धन अपने आप आता है। इसलिए धन पाने के लिए इस त्रिकोण का मजबूत होना बहुत आवश्यक है। इस त्रिकोण को मजबूत बनाने के लिए दो मुद्राएं काम आती है, पहली प्राण मुद्रा और दूसरी सूर्य मुद्रा।इसके साथ ही पृथ्वी मुद्रा और जल मुद्रा की सहायक होती हैं। तो पहले हम जानेंगे कि प्राण मुद्रा क्या होती है, साथ ही सूर्य मुद्रा, पृथ्वी मुद्रा और जल मुद्रा के बारे में जानकर और इन्हें नियमित रूप से प्रयोग करते रहेंगे, तो वह त्रिकोण मजबूत हो जाएगा और आपको धन और यश दिलाईगा।

मुद्राओं को समझ कर इन्हें नियमित रूप से करें

प्राण मुद्रा सूर्य मुद्रा, पृथ्वी मुद्रा,और जल मुद्रा को ठीक प्रकार समझ कर नियमित रूप से करना चाहिए सबसे पहले हम प्राण मुद्रा की बात करते हैं प्राण मुद्रा में पृथ्वी तत्व की प्रतिनिधि अनामिका जो सबसे छोटी उंगली के पास होती है और जल तत्व की प्रतिदिन की सबसे छोटी उंगली को अंगूठे से स्पर्श किया जाता है सूर्य मुद्रा में पृथ्वी तल के प्रति  मेथी अनामिका उंगली सबसे छोटी उंगली के पास वाली उंगली को अंगूठे से स्पर्श किया जाता है। पृथ्वी मुद्रा में पृथ्वी तत्व की प्रतिनिधि अनामिका उंगली मत तक सबसे छोटी उंगली के पास वाली उंगली को अंगूठे से स्पर्श किया जाता है जल मुद्रा में जल तत्व की गतिविधि सबसे छोटी उंगली मतलब कनिष्ठा को अंगूठे से स्पर्श किया जाता है। मुद्राओं को नियमित रूप से करने पर हाथ की रेखा स्पष्ट और बलवान होती है।

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